Himachal Pradesh के पहाड़ी इलाकों में भारी वर्षा के कारण हाहाकार मचा हुआ है। बारिश के साथ-साथ बादलों की फटने से घटित घटनाएं भयानक तबाही पैदा कर रही हैं। भूस्खलन के कारण पहाड़ टूट रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप मंडी, शिमला, कुल्लू, जिला सिरमौर और अन्य क्षेत्रों में हालात बिगड़े हुए हैं। बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए स्कूल और कॉलेज बंद हैं।
प्रदेश में इस सप्ताह बादलों की फटने और उनके कारण होने वाले भूस्खलन के परिणामस्वरूप 60 से अधिक लोगों की मौके पर मौत हो गई है। शिमला के समरहिल में भूस्खलन के कारण शिव बाड़ी मंदिर के मलबे से पांच शवों की खोज की गई है। इस घटना में मृतकों की संख्या अब 13 तक पहुंच गई है और तलाशी अभियान जारी है। इस दौरान हमें जानने की आवश्यकता है कि बादलों की फटने की प्रक्रिया और उनके पीछे के कारण क्या होते हैं। इसका अनुमान लगाना कठिन होता है क्योंकि इन घटनाओं के पीछे कई विभिन्न कारक हो सकते हैं। क्या इन घटनाओं के रोकथाम के लिए कोई उपाय मौजूद है?
बादल फटना क्या है?
अगर किसी पहाड़ी क्षेत्र में एक घंटे में 10 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है, तो उसे बादल फटना कहा जाता है। यह महत्वपूर्ण प्रमाण में पानी का गिराव नहीं सिर्फ़ संपत्ति को हानि पहुँचाता है, बल्कि लोगों की जान भी खतरे में पड़ती है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के निदेशक मृत्युंजय महापात्रा के अनुसार, बादल फटना एक छोटी स्तर की घटना होती है और यह अधिकांशत: हिमालयी पहाड़ियों या पश्चिमी घाटियों में होती है। महापात्रा का कहना है कि जब मॉनसून की गर्म हवाएँ ठंडी हवाओं से मिलती हैं, तो इससे बड़े बादल बनते हैं। यह स्थलाकृति (टोपोग्राफी) या भूगोलिक कारणों के कारण भी हो सकता है।